Wednesday, November 30, 2011

मै जागता रहा

तेरे मेरे बीच में दुनिया की एक दीवार थी..
बात कुछ तो थी मगर ,न दुश्मनी न प्यार थी...
बंद यूँ होने लगे ,उम्मीद के चिलमन तभी
दूर रह गए कहीं वो ,याद के गुलशन सभी
उस हसीन याद के दीदार की उम्मीद में ....मै जागता रहा ....

मील का पत्थर बना मै यूँ गडा हूँ राह में
धुल से सना हुआ मै धुप की पनाह में
देखो मुझको छोड़कर यूँ ,आगे बढ़ रहे है लोग
मुकद्दर नहीं मै बन सका, ठीक कर रहे है लोग
मुझे छोड़कर जो बढ़ गया उस यार की उम्मीद में ....मै जागता रहा

सब सो गए थे रास्ते ,और सो गयी दीवार भी
सब सो गए इस पार और सब सो गए उस पार भी
सो गए चिलमन और वो दर भी सारे सो गए
सो गये रुबाब और वो डर भी सारे सो गए
एक हसीन ख्वाब की बेकार सी उम्मीद मे...... मै जागता रहा


ANSH

Friday, November 25, 2011

आओ हम कुछ और करें.........

बहुत हो चुके आन्दोलन , क्यूँ बेमतलब का शोर करे
जिन राहो की हो मंजिल ,हम अपना रुख उस ओर करे
बहुत हुई है तोड़ फोड़ इस अंधे विद्रोही पथ पर
बहुत हो चुके हंगामे अब आओ , हम कुछ और करें

बहुत जलाई ट्रेन बसे और बहुत जलाये है दफ्तर
बहुत किये बाज़ार बंद और इतराए हम सडको पर
राजनीति में नैतिकता का बहुत हुआ है चीर हरण
बहरों की इन गलियों मै ,यारो फिर से क्यों शोर करें
आओ हम कुछ और करें ...

बहुत जलाये पुतले हमने ,आओ जलाये दीप कहीं
बहुत है बाटे झंडे पर्चे, आओ बाटे ख़ुशी कहीं
सरकारों का छोड़ सुधरना ,पहले हम सुधरे तो सही
युगों युगों से रात रही है , आओ हम अब भोर करें
आओ हम कुछ और करें.........

कौन पूछता है

कल रात की बारिश में , मेरा रोम रोम भीगा
पर किसकी जान डूबी ये कौन पूछता है
सारा जहाँ है कायल किस्से कहानियों का
है किसकी आपबीती ये कौन पूछता है

है रंज तुझको जिस पर ,वो है ख़ुशी किसी की
समझा तू जिसको ताकत वो बेबसी किसी की
यहाँ ख़ाक हुआ कोई , निकली तपिश किसी की
पैदा किया किसी ने और परवरिश किसी की

समझ के न समझना ,ज़माने की समझ है यारों
अब तू यहाँ क्या समझा ये कौन पूछता है


ANSH

जो तुझपर मेरी आशिकी का कुछ असर होता

जो तुझपर मेरी आशिकी का कुछ असर होता
मंजिले आसान हो जाती जो तू भी हम सफ़र होता

नहीं कोई गिला मुझको तेरे यूँ दूर जाने का
मगर जो साथ रह जाता तो क्या रंगीन सफ़र होता

अब भी नहीं इस जहाँ में ठिकाना दीवाने का
अच्छा होता जो तेरे दिल में ही घर होता

यूँ तो बहुत खुशियाँ है ये गम भूल जाने को
भूल ही जाता ,अगर न तेरा असर होता

मै इस जहाँ में इस कदर बदनाम न होता
गर तेरे इरादों से ना मै बेखबर होता

हस्ती ही क्या थी हुस्न की तेरी ज़माने में
मै मरने वालो में शामिल न गर होता

ANSH

Wednesday, November 16, 2011

हर चीज़ यहाँ ज़रा सी कम है ...

कडवी कडवी सच्चाई या मीठी मीठी सी बातें
बादल और आँखों से होने वाली सारी बरसाते
कुछ तो हरे भरे दिन कम है , कुछ कम है प्यारी रातें
कुछ मुर्दे साँसों को तरसे , कुछ जिंदा ही मर जाते
कुछ की सुख में , कुछ की दुःख में , आँख यहाँ सभी की नम है
हर चीज़ यहाँ ज़रा सी कम है ............

महल हो ,घर हो, या सड़को पर बिखरी हुई दुकाने हो
हो मस्जिद मंदिर ,गुरुद्वारे ,या बहके मैखाने हो
श्रद्धा हो , ईमान हो या फिर पुश्तो के अफ़साने हो
दौर हो नया नवेला चाहे ,गुज़रे हुए ज़माने हो
सब आग लगाते एक दूजे को , जब जब बदले ये मौसम है
हर चीज़ यहाँ ज़रा सी कम है ............

उस नन्ही सी अंगडाई में, रोज़ कहानी परियों की
चाराने की वो मिश्री , एक किलकारी फुलझड़ियों की
दिन चमकीला रस्ते का , वो अँधेरी रातें गलियों की
कुछ मुरझाये फूलों का गम,कुछ बैचेनी इन कलियों की
गम न हो तो कोई ख़ुशी नहीं , पर ख़ुशी नहीं होने का गम है
हर चीज़ यहाँ ज़रा सी कम है ............

ANSH

Monday, November 14, 2011

यारों...

सवाल इतना था, कि यारी है बड़ी या इश्क
वो ढूंढते ही रह गए , जवाब यारों

महबूब ने पूछा कि क्या रक्खा है महफ़िल में
भला हंसी का भी कोई करता है हिसाब यारों
...
खुदा था सामने लेकिन नज़र थी हुस्न वालो पर
खुदा हैरत में हो गया लाजवाब यारों

जब तक नहीं थे हाथ सबके साथ में मेरे
तब तक कहा था अंश का रुबाब यारों

जन्नत के दरवाजों से कहकर लौट आये है
कि यारों कि महफ़िल का नहीं जवाब यारों

ANSH

Monday, November 7, 2011

मुकम्मल निशाँ हमारे देखे

हारे कदमो के हमसफ़र ,बैसाखियों के सहारे देखे
फलक में तनहा बदल ने , कुछ उड़ते हुए गुबारे देखे
देखे नहीं थे मंज़र जो मैंने बादशाहत में
वो भीगी हुई पलको के किनारे देखे

डूबा सूरज यों ,स्याह हुई सारी धरती
अमावस तनहाइयों की सर्द सी आहे भरती
खुद को झोंककर इन बेदर्द अंधेरो में
बरसो बाद फिर मैंने, सितारे देखे

गुबार ए ख़ाक में अब नज़र कुछ साफ़ नहीं
यहाँ बस तू ही तू है और कहीं भी आप नहीं
ज़मानो से कहीं भी मेरा नाम ओ नीशान नहीं
खाक में हमने, मुकम्मल निशाँ हमारे देखे

ANSH

Saturday, November 5, 2011

अफसानो मे

हूर तुमसा नहीं है कोई ,दो जहानों में
में भी दीवाना एक ख़ास हूँ दीवानों में

तुझे ही देखकर ,कही काली घटा रूकती होगी
तुझे ही देखकर सूरज की नज़र झुकती होगी
नशा ही झील सी तेरी आँखों में इतना सनम
उतनी मय भी नहीं है दुनिया के मैखानो में

आसमा से पूछ लूँगा ,आज तेरा पता
रब से लड़ क़र भी, करूंगा मै इश्क की ये ख़ता
इल्म है मुझको भी की बहुत से दिल टूटे होंगे
जान भी कम नहीं , है मेरे भी अरमानो मे

इश्क मे चाहे जितनी भी रुसवाईयाँ हो
ज़िंदगी बस तेरी यादें और तन्हाईयाँ हो
चाहे लौट आऊ, बेरंग मै तेरे दर से
लिख के जाऊँगा ,मेरा नाम मै अफसानो मे


ANSH