Tuesday, January 19, 2010

मेरे सफ़र में भी , बड़ी मुश्किल सी राहें है
कहीं पर बीच सहरा में , खुश्क प्यासी निगाहें है
न है फरियाद कोई ,ना कोई शिकवा खुदाई से
तकदीर की मुफलिसी पर, हम फिर मुस्कुराएँ है

मिले सड़क पर दीवाना कोई हसता हुआ खुद पर रुक कर ज़रा रुख देख और पहचान मै ही हूँ

कभी तेरी परस्ती मै जिसे काफिर कहे दुनिया
इस बेजान मुफलिस को भी अब कातिल कहे दुनिया
कभी यादों की गलियों मै पुकारे प्यार से कोई
मुड कर ज़रा रुख देख और पहचान मै ही हूँ

कभी जो याद आ जाये तुझे टूटे हुए नाते
कभी कह जाये दिल तुझसे कुछ अनसुनी बातें
किसी याद का दिल से अगर अफ़सोस हो तुझको
किसी की याद की भी जब कमी महसूस हो तुझको
कर बंद आँखें ,और ज़रा सा मुस्कुरा तू अंश
तेरे दिल मै बसी खोयी हुई वो याद मै ही हूँ रुक कर ज़रा रुख देख और पहचान मै ही हूँ


ANSH